प्रदेश में अश्वगंधा के लिए एशिया की मंडी के रूप में नीमच और मंदसौर जिले का नाम अग्रणी रहा है। जबलपुर में इस औषधीय फसल के लिए कृषि विज्ञानी यहां की जलवायु विपरीत होना बताकर खेती करने को मना कर देते हैं।
जबकि विकासखंड पाटन के ग्राम भरतरी में वर्तमान में दस एकड़ के खेतों में अश्वगंधा की गुणवत्ता पूर्ण फसल लहलहा रही है। यह कर दिखाया ग्राम के युवा कृषक दुर्गेश पटेल ने।
युवा किसान दुर्गेश ने अश्वगंधा फसल को जबलपुर जिले में चैलेंज के रूप में लेते हुए गत वर्ष एक एकड़ में पचास हजार की लागत से देखभाल कर खेती की। पांच माह की खेती से लगभग पांच क्विंटल अश्वगंधा की जड़, पौधों के भूसा (पंचांग) और बीज की उपज को आनलाइन आयुर्वेदिक कंपनी को तीन लाख रुपये में बेचकर फायदा कमाया। इस फसल की खास बात यह है की इसका बीज, जड़ और पेड़ से निर्मित भूसा जिसे आयुर्वेद में पंचांग कहा जाता है, वह सब कुछ बिकता है। जबलपुर की जलवायु के विपरीत अपने हौसले बुलंद करते हुए दुर्गेश पटेल ने और उनके मित्रों ने मिलकर भरतरी में प्लांटेशन को बढ़ावा देते हुए इस बार दस एकड़ खेतों में अश्वगंधा लगाया है। बगैर केमिकल, खाद के देखभाल के बीच गुणवत्ता पूर्ण फसल लहलहा रही है। औषधीय अश्वगंधा का शरीर का वजन, इम्यूनिटी बढ़ाने और वजन कम करने में प्रयोग आयुर्वेद में प्रमुखता से किया जाता है।
उद्यानिकी अधिकारी नेहा श्रीवास्तव ने बताया कि जिले में इस फसल की कल्पना भी नहीं की थी। ग्राम भरतरी में अश्वगंधा का गुणवत्ता पूर्ण प्लांटेशन देखकर विकास खंड में अश्वगंधा औषधीय प्लांटेशन की अपार संभावनाएं बढ़ गई हैं। अन्य किसान यदि इसकी खेती करने में रुचि लेते हैं तो विभाग से किसानों को अश्वगंधा बीज पर पचास प्रतिशत तक छूट दिलाने का प्रस्ताव पेश किया जाएगा।