खेती को लाभदायक बनाने के लिए जिले की करेली तहसील के ग्राम करताज के प्रगतिशील कृषक श्री राकेश दुबे ने जैविक खेती अपनाई और अनेक नवाचार किये। वे कृषि क्षेत्र में नवाचार करने के लिए जाने जाते हैं। देश के विभिन्न संस्थानों से करीब 6 हजार किसान और कृषि शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थी उनके कृषि प्रक्षेत्र का भ्रमण कर चुके हैं। कृषक श्री दुबे जैविक खेती अपनाने का कारण उत्पादक सामग्री का सदुपयोग, उपज का मूल्य संवर्धन एवं समुचित कचरा प्रबंधन बताते हैं। वे कहते हैं कि इससे खेती में लगने वाली लागत न्यूनतम और लाभांश दोगुना हो जाता है। श्री दुबे बताते हैं कि गन्ने के साथ अंतरवर्तीय फसल लगाकर स्वयं के संसाधनों से गन्ने की खेती कर वे प्रति एकड़ 2 से ढाई लाख रूपये तक का शुद्ध लाभ ले रहे हैं।
कृषक श्री दुबे बताते हैं कि खेती में हानिकारक कीटनाशक, खरपतवारनाशी एवं रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के दुष्परिणाम को रोकने के लिए उन्होंने सबसे पहले मध्यप्रदेश स्टेट आर्गेनिक सर्टिफिकेशन एजेंसी- एमपीएसओसीए के मार्गदर्शन में खेत की जमीन का जैवीकरण कर 16 हेक्टर जमीन को पूरी तरह प्रमाणित जैविक प्रक्षेत्र में तब्दील किया। वे इस जमीन पर गन्ना के साथ- साथ गेहूं, चना, अरहर, मूंग, उड़द, मैथी, अलसी, राजमा, धना, मक्का, ज्वार, आलू, प्याज, लहसुन, अदरक आदि का उत्पादन लेते हैं। इसके साथ कृषि वानिकी के तहत खेत की मेढ़ों पर 20 हजार खमेर के पेड़ भी लगाये हैं।
कृषि क्षेत्र में नवाचार – गन्ना खेती में बीज संवर्धन में नवाचार करते हुए श्री दुबे ने एसटीपी व एसबीटी पद्धतियों का आविष्कार किया। सेट ट्रांसप्लांटिंग- एसटीपी के तहत गन्ना बीज पौधशाला तैयार कर 45 दिनों में खेत में पुन: रोपण किया, इससे लगने वाले बीजों की मात्रा 45 क्विंटल से घटकर दो क्विंटल रह गई। इस कारण से बीज पर होने वाले खर्च में 200 प्रतिशत की कमी आई और मजदूरी में 400 प्रतिशत की। इन पद्धतियों में गन्ने की उन्नत किस्मों सीओवीएसआई 3102, वीएसआई 265, 434, 86032 नीरा व 8005 का उपयोग किया। उन्होंने स्वयं की सेट बंडल टेक्निक- एसबीटी से नर्सरी को तैयार करने में मिट्टी का उपयोग नहीं किया। इसमें गन्ना की एक आंख के टुकड़ों को 200 लीटर पानी एवं 100 ग्राम शहद के घोल में डुबाकर पॉलीथिन बैग में पैक करके अंधेरे कमरे में रख दिया जाता है। तीसरे दिन इनमें अंकुर निकल आते हैं। इन आंखों को 7 वें दिन खेत में रोपित किया जाता है। इस पद्धति में एक एकड़ रकबे में सवा से डेढ़ क्विंटल बीज लगता है और प्रति एकड़ मजदूरी 800 रूपये आती है।
पौधशाला तैयार करने में खेत पर उठे हुए बेड पर गन्ने की गड़ेरी का सीधा रोपण किया जाता है। इसका उपयोग श्री दुबे न केवल अपने खेतों में करते हैं, बल्कि किसानों को ये किस्में न्यूनतम कीमत पर उपलब्ध कराते हैं। इस पद्धति में प्रति एकड़ केवल दो क्विंटल गन्ना बीज लगता है। पौधा तैयार होने के बाद खेत में रोपण करने में मात्र 1.6 क्विंटल बीज लगता है। मजदूरी की लागत प्रति एकड़ 800 रूपये तक घट जाती है।
विकसित तकनीक – जैविक खेती में संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने के लिए श्री दुबे जैविक खाद, जीवाणु कल्चर एवं कीट प्रबंधन के लिए पर्यावरण मित्र तकनीकों का उपयोग करते हैं। इससे उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ती है और खेत की मिट्टी विषमुक्त व उपजाऊ बनती है। वे नीम की खाद प्रेसमड, वर्मी कम्पोस्ट, राइजोबियम, एसीटोबेक्टर, एजोस्पिरिलम, पीएसबी, सूडोमोनास, बबेरिया, ट्राइकोडरमा, मठा- छाछ का छिड़काव, शहद, मल्चिंग के लिए गन्ने की सूखी पत्तियों का उपयोग करते हैं। वे बाजार के जैविक कल्चर का उपयोग न कर घर पर ही सालभर के लिए कल्चर तैयार करते हैं। घर पर उपलब्ध गोबर, गौमूत्र एवं वर्मी कम्पोस्ट से खाद जीवामृत तैयार करते हैं।
अंतरवर्ती खेती – गन्ने की खेती का लाभ बढ़ाने के लिए कृषक श्री दुबे अंतरवर्ती खेती अपनाते हैं। वे मसूर, चना, प्याज एवं आलू को प्रथम और रैटून गन्ने की पंक्तियों के बीच में लगाकर फसलों का सफल एवं लाभदायक उत्पादन ले रहे हैं। वे सालभर सिंचित होने वाले गन्ने के खेतों की मेढ़ों का उपयोग खमेर के पेड़ लगाने में करते हैं। श्री दुबे अब तक 20 हजार खमेर के पेड़ लगा चुके हैं। ये पेड़ अगले 10 वर्षों में 7 लाख रूपये तक की आय देगें।
उपज का मूल्य संवर्धन एवं गुड़ उत्पादन, देश- विदेश में बिक रहा है प्राकृतिक गुड़
- विभिन्न फ्लेवर्स में उपलब्ध है प्राकृतिक गुड़
नवाचार अपनाने से प्राप्त गन्ने का उपयोग श्री दुबे जैविक गुड़ एवं अन्य उत्पादों के निर्माण में करते हैं। ये नैसर्गिक गुड़ जैविक उत्पाद के रूप में पंजीकृत है, जो कुशल मंगल प्राकृतिक गुड़ के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी बिक्री देश और विदेश में भी की जा रही है। श्री दुबे ने जैविक गुड़ को लौंग, इलायची, सौंठ, सौंफ, अजवाइन, काली मिर्च, हल्दी, अश्वगंधा, आंवला आदि अनेक फ्लेवर्स में तैयार किया है। इसे बर्फी व ब्लाक रूप में बनाया जाता है। इसकी 16 ग्राम, 20 ग्राम, आधा किलो, एक किलो एवं 5 किलो की पैकिंग कर बिक्री की जाती है। कैंडी एवं बर्फी के रूप में भी गुड़ की बिक्री की जाती है। गुड़ में कोको पाउडर मिलाकर बनाई गई कैंडी बच्चों द्वारा काफी पसंद की जाती है। वे हस्त निर्मित गुड़- शक्कर का उत्पादन भी करते हैं। गन्ने की आंख निकालने के बाद बचे हिस्से से नैसर्गिक सिरका- विनेगर भी बनाया जाता है। वे स्वास्थ्य एवं प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर गुड़ तैयार करते हैं।
श्री दुबे वर्तमान में प्रति एकड़ 500 क्विंटल गन्ने का उत्पादन ले रहे हैं। उनका लक्ष्य इसे बढ़ाकर एक हजार क्विंटल करने का है। वे सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर देश- विदेश के किसानों एवं उपभोक्ताओं से सीधे जुड़े हैं।
श्री दुबे ने गन्ना उत्पादक समूह फार्मर प्रोड्यूसर कम्पनी श्री देव बहुआयामी जैविक उत्पादन सहकारी का निर्माण कर किसानों को उत्पादन के मूल संवर्धन का महत्व बताया है। यह समिति नये बीज प्राप्त कर किसानों को उपलब्ध करा रही है। इसके अलावा गन्ना उत्पादक समूह बनाकर किसानों को प्रशिक्षित कर रही है। कृषक श्री राकेश दुबे को आईसीएआर कोयंबटूर द्वारा इनोवेटर आवार्ड प्रदान किया गया है। उन्हें मध्यप्रदेश शासन के किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग द्वारा दो बार सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार दिया जा चुका है। जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्व विद्यालय जबलपुर द्वारा श्री दुबे को कृषक फैलो सम्मान भी मिल चुका है।
कृषक श्री राकेश दुबे कहते हैं कि वे अपने नवाचारों के माध्यम से किसानों में अधिकाधिक जागरूकता बढ़ाना चाहते हैं, जिससे खेती को लाभदायक बनाया जा सके। साथ ही परंपरागत गुड़ को घर- घर तक पहुंचाकर इसका लाभ दिलाया जा सके।
सहायक संचालक कृषि गन्ना डॉ. अभिषेक दुबे कहते हैं कि कृषक श्री राकेश दुबे ने गन्ने के मूल्य संवर्धन के लिए इससे नवीन उत्पाद बनाकर गन्ने की खेती को उन्नत बनाया है। उनके द्वारा तैयार उत्पाद देश- विदेश में निर्यात किये जा रहे हैं। उन्होंने विभिन्न फ्लेवर में गुड़ तैयार किया है। गुड़ पावडर और गुड़ का सिरका भी बनाया है। इससे जिले के गन्ना किसानों को खेती में नवीन संभावनायें दिखाई दे रही हैं। कृषक श्री दुबे ने जैविक खेती अपनाकर मिट्टी के कार्बनिक जीवांश में काफी वृद्धि की है।