सरलजी के साहित्य को अगली पीढ़ी तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य : डॉ. देवेंद्र जोशी सरल काव्यांजलि की गोष्ठी में कोमल वाधवानी और डॉ. प्रणव नागर का सम्मान

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उज्जैन। “होंगे वे कोई और जो मनाएँ अपना जन्मदिवस, मेरा नाता तो रहा मरण त्योहारों से।” संस्था सरल काव्यांजलि की मासिक गोष्ठी में राष्ट्रकवि सरलजी की इन पंक्तियों के साथ उन्हें स्मरण करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार और मध्यप्रदेश लेखक संघ, उज्जैन के सचिव डॉ. देवेंद्र जोशी ने कहा कि ध्वस्त होते मूल्यों के दौर में सरलजी को पढ़कर एक पूरी पीढ़ी ने राष्ट्रप्रेम को समझा है। हमारा कर्तव्य है कि हम राष्ट्रवाद की भावना को अगली पीढ़ी तक पहुँचाएँ। उन्होंने ‘ज़िन्दगी का दर्द’ शीर्षक की अपनी कविता भी पढ़ी।
संस्था महासचिव राजेंद्र देवधरे ‘दर्पण’ ने बताया कि देवास रोड स्थित श्री विशाला कॉलोनी में श्री के.एन. शर्मा ‘अकेला’ के निवास पर आयोजित इस गोष्ठी में दृष्टिबाधित, छह पुस्तकों की रचनाकार संस्था की वरिष्ठ सदस्या, कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा’ और संस्था के वरिष्ठ सदस्य, हाल ही में प्रेस क्लब चुनाव में निर्वाचित हुए डॉक्टर प्रणव नागर का शॉल और स्मृति चिन्ह प्रदान कर अभिनन्दन किया गया।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्ष, वरिष्ठ साहित्यकार प्राचार्य कालिदास कन्या महाविद्यालय डॉक्टर वन्दना गुप्ता ने ‘विश्वास’ कविता का पाठ करते हुए संस्था की विभिन्न उपलब्धियों पर चर्चा की। उन्होंने कहा, “मुझे गर्व है कि मैं सरल काव्यांजलि परिवार में हूँ।” प्रारम्भ में आशागंगा शिरढ़ोणकर ने सरलजी की अमर रचना ‘मैं अमर शहीदों का चारण उनके यश गाया करता हूँ, जो कर्ज राष्ट्र ने खाया है मैं उसे चुकाया करता हूँ” का वाचन किया। विशेष अतिथि प्रोफेसर रवि नगाइच ने हनुमान जी पर आधारित कविता ‘हे जग तारक मनभय हारक’, राजेन्द्र नागर ‘निरन्तर’ ने ‘डायन’ और ‘खूंटी पर लटका सच’ लघुकथाओं, आशागंगा शिरढ़ोणकर ने ‘आदमखोर आदमी, युद्धखोर राष्ट्र’ कविता, कोमल वाधवानी ‘प्रेरणा’ ने ‘विकलांग कौन’, ‘हारे हुए की लड़ाई’ कविता, नरेंद्र शर्मा ‘चमन’ ने वीर रस की पँक्तियाँ ‘तिरंगा लहराकर आऊँगा या तिरंगे में लिपटकर आऊँगा’, के.एन. शर्मा ‘अकेला’ ने ग़ज़ल ‘अब सोने में क्या रखा है, जीवन भर तो सोया है।’, वरिष्ठ उपन्यासकार, कवि दिलीप जैन ने ‘सबसे लोकप्रिय है मृदु हास्य’ कविता, विजयसिंह गेहलोत ‘साकित उज्जैनी’ ने ग़ज़ल ‘एक दूसरे के दर्द का एहसास किसे है, तकिए के सिवा आँसुओं की प्यास किसे है’ तथा सन्तोष सुपेकर ने कविता ‘यंत्र कोई नया चाहिए अब पहचान के लिए, तुम्हारा असली चेहरा बहुत नीचे दब गया है’ सुनाकर कार्यक्रम को नई ऊंचाईयां प्रदान कीं। सन्तोष सुपेकर ने डॉक्टर देवेंद्र जोशी की कृति ‘राष्ट्रमाता कस्तूरबा’ की समीक्षा की। इस अवसर पर स्व. श्रीकृष्ण सरलजी के सुपुत्र श्री प्रदीप ‘सरल’ ने सरलजी पर केन्द्रित आचार्य देवेंद्र देव की सद्य:प्रकाशित पुस्तक का परिचय दिया।
प्रारम्भ में अतिथि स्वागत संस्था सचिव डॉक्टर संजय नागर, श्रीमती शैला शर्मा, डॉक्टर महेश कानूनगो ने किया। संचालन सन्तोष सुपेकर ने किया। आभार श्री के.एन. शर्मा ‘अकेला’ ने माना।

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