सागर के डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग में लिवर कैंसर की रोकथाम को लेकर एक बड़ा शोध हुआ है। रिसर्च में सामने आया है कि पुरुषों में गुप्त रोग के इलाज में इस्तेमाल होने वाला केमिकल सिल्डेनाफिल लिवर कैंसर की ग्रोथ का रोकने में सक्षम है।
विभाग एवं शोधार्थी का दावा है कि फॉस्फोडाइएस्टरेज 5 अवरोधक तडालाफिल और सिल्डेनाफिल द्वारा लिवर कैंसर की रोकथाम की यह दुनिया में पहली रिपोर्ट है, इस शोध को जर्नल ऑफ बायोकेमिकल एंड मॉलिक्यूलर टॉक्सिकोलॉजी में भी प्रकाशित किया जा चुका है। जूलॉजी विभाग के शोधार्थी इस विषय पर वर्ष 2013 से रिसर्च कर रहे थे। 9 साल तक चली इस रिसर्च में चूहे पर प्री-क्लीनिक ट्रायल सफल होने के बाद यह रिपोर्ट सामने आई है।
फफूंद लगे भोजन से लिवर कैंसर की आशंका ज्यादा
रिसर्च गाइड और जूलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजकुमार कोइरी ने बताया कि लिवर कैंसर (हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा) दुनियाभर में कैंसर से संबंधित मौत का तीसरा प्रमुख कारण है। यह पुरुषों में पांचवां और महिलाओं में सातवां सबसे अधिक बार होने वाला कैंसर है।
दुनियाभर में रिपोर्ट किए गए चार प्रमुख कैंसरों में लिवर कैंसर के 7 लाख से अधिक नए मामलों की पुष्टि हुई है। वहीं विश्व में सालाना 6 लाख से अधिक मौतें इसी बीमारी से होती हैं। लिवर कैंसर का कारण लंबे समय तक शराब का सेवन और हेपेटाइटिस वायरस है। लेकिन इसका एक और बड़ा कारण फफूंद लगा खाना भी है।
हम आमतौर पर रात का बचा खाना सुबह खाते हैं या लंबे समय तक गोदामों में रखे अनाज का इस्तेमाल करते हैं। जिसमें फफूंद लगने की आशंका बढ़ जाती है। यदि व्यक्ति लिवर सिरोसिस का शिकार है तो यह फफूंद (अफ्लाटॉक्सिन बी-1) लिवर कैंसर का कारण बन सकती है, लेकिन लिवर कैंसर में एंटी-कैंसर दवाएं ज्यादा प्रभावी नहीं होती। यही कारण जानने के लिए डॉ. राजकुमार कोईरी के नेतृत्व में डॉ. सौरभ कुमार छोंडकर, डॉ. दिव्या रावत, निधि गुप्ता और विनोदिनी दुबे ने शोध कार्य किया।
कैंसर के अन्य प्रकारों पर भी होगा दवा का शोध
डॉ. राजकुमार कोइरी ने बताया कि सिल्डेनाफिल और तडालाफिल का इस्तेमाल अभी सिर्फ लिवर कैंसर पर किया गया है। अब इसमें एंटी-कैंसर ड्रग के प्रभाव और मैकेनिज्म पर कार्य कर रहे हैं। इसके साथ ही कैंसर के अन्य प्रकारों पर भी फॉस्फोडाइएस्टरेज 5 अवरोध का इस्तेमाल किया जाएगा। सिल्डेनोफिल कोई नया ड्रग नहीं है। हमने सिर्फ एक प्राइमरी इंफोर्मेशन जनरेट की है। अब इसके आधार पर मेडिकल कम्युनिटी फेस-1 ट्राइल शुरू कर सकती हैं।
सिल्डेनाफिल के उपयोग से सेल में ठहरने लगी एंटी-कैंसर दवाएं
शोध के दौरान चूहे को पहले चार दिन तक अफ्लाटॉक्सिन बी-1 (फफूंद) देकर लिवर कैंसर उत्पन्न किया गया। इसके बाद देखा गया कि कैंसर कोशिकाओं में हाइपॉक्सिया की स्थिति निर्मित होती है और ट्यूमर कोशिकाएं मल्टीड्रग प्रतिरोधी (MDR) को व्यक्त करती हैं, जो एंटी-कैंसर दवाओं को कोशिकाओं में रूकने नहीं देता।
एफ्लक्स पंप से दवाओं को बाहर निकाल देता है। इससे कैंसर की दवाएं सफलतापूर्वक काम नहीं कर पाती। इस दौरान सामने आया कि यदि ऑक्सीजन ट्यूमर के बीच तक पहुंचे तो MDR को कम किया जा सकता है। ऐसे में धमनियों को चौड़ा करने करने के लिए पुरुषों के गुप्त रोग के इलाज में काम आने वाला केमिकल सिल्डेनाफिल का इस्तेमाल किया गया।
इससे ट्यूमर में जहां हाइपॉक्सिया की स्थिति बनी है, वहां ब्लड में मौजूद ऑक्सीजन पहुंचाकर MDR को कम किया गया। इससे एंटी-कैंसर दवाओं ने ट्यूमर कोशिकाओं में ठहरकर अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर दिया हैं। इस शोध को यूजीसी और साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड ने अनुदान दिया।