परंपरागत लोक कला संरक्षण एवं उससे आर्थिक लाभ : शांताबाई

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उज्जैन। परंपरागत लोक कला का संरक्षण करते हुए उस के माध्यम से हम आर्थिक लाभ ले सकते हैं जैसे हम पूर्व में घर सजावट के लिए कई प्रकार से अपने घरेलू साधनों से सजावटी वस्तु बनाते थे अब इन वस्तुओं की जगह आर्टिफिशियल, प्लास्टिक एवं अन्य धातुओं से बनने वाली वस्तुओ ने ले ली है जो कि हमारे स्वास्थ्य एवं परिवार के लिए घातक है लेकिन हमारी परंपरागत लोक कला एवं घर सजाने के लिए मांडने जो कि खड़ी एवं गेरू से बनाए जाते थे, उसका उपयोग कर हम घर के सजाने के साथ आर्थिक लाभ भी कमा सकते हैं।
यह बात शांताबाई ने भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ कि सहकारी शिक्षा क्षेत्रीय परियोजना द्वारा चलाए जा रहे प्राथमिक कृषि साख सहकारी सस्था बिछड़ोद के सदस्यों के परिवार के सदस्यों के लिए एवं स्वयं सहायता समूह की महिलाओं के लिए के आर्थिक विकास हेतु ग्राम बिछड़ोद खालसा में स्किल डेवलपमेंट के अंतर्गत आर्टिफिशियल ज्वेलरी एवं परंपरागत लोक कला के आठ दिवसीय प्रशिक्षण के दौरान कही।
प्रशिक्षण का आयोजन प्रभारी परियोजना अधिकारी चन्द्रशेखर बैरागी द्वारा किया गया एवं प्रशिक्षण के पश्चात प्रशिक्षणार्थियों को उज्जैन भ्रमण कराया गया, जिसका उद्देश्य प्रशिक्षण पश्चात आर्टिफिशियल ज्वेलरी निर्माण एवं परंपरागत लोक कला के लिए कच्चे माल एवं निर्मित ज्वेलरी एवं परंपरागत लोक कला के उत्पाद बिक्री कैसे की जाए, बतलाने के लिए उज्जैन में विभिन्न प्रतिष्ठानों पर भ्रमण कराया गया।
तत्पश्चात प्रशिक्षणार्थियों के लिए प्रमाण पत्र वितरण कार्यक्रम आयोजित किया, जिसके मुख्य अतिथि जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती कमला कुमार, विशिष्ट अतिथि श्रीमती सुमन वर्मा, प्रेरणा सहकारी संस्था विशेष अतिथि एवं विषय विशेषज्ञ डॉ. मोनी सिंह वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र उज्जैन एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता शोभा यादव वरिष्ठ लेखापाल अपेक्स बैंक उज्जैन रहे।
संचालन वरिष्ठ सहकारी शिक्षा प्रेरक प्रेमसिंह झाला ने किया। अतिथि एवं प्रतिभागियों का आभार जगदीश नारायण सिंह सहकारी शिक्षा प्रेरक ने माना।

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