भोपाल की नातिन गुनीत को दूसरी बार ऑस्कर देश की पहली फीमेल डीजे से शुरू किया करियर, जहांनुमा पैलेस में शादी करना चाहती थीं

0
128

सोमवार की सुबह 8 बजे जब ऑस्कर अवॉर्ड्स अनाउंस किए गए, तो मुंबई और दिल्ली में रह रहे सेलेब्रिटीज और फिल्म जगत से जुड़े लोगों की सांसें थमी हुई थीं। लेकिन, जैसे ही बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट फिल्म का अवॉर्ड द एलिफैंट विस्पर्स को अनाउंस किया गया, तो भोपाल के लोगों के चेहरे पर भी खुशी दौड़ गई। वजह थी- इस फिल्म को प्रोड्यूस करने वाली गुनीत मोंगा का ननिहाल भोपाल में है। वे बचपन में कई बार यहां आती-जाती रही हैं।

जहांनुमा पैलेस में शादी करना चाहती थीं गुनीत
गुनीत के मामा कुलप्रीत सिंह बताते हैं- गुनीत का चीजों को देखने का नजरिया हमेशा से ही घर के बाकी बच्चों से काफी अलग रहा है। गुनीत सिंगल चाइल्ड थीं और बचपन से दिल्ली में रही हैं। छुट्टियों में भोपाल आना हुआ करता था। 20 साल की उम्र में जब उस बच्ची ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया, तो उसने अपने आप को खुद ही संभाला। मुंबई जा पहुंची और स्ट्रगल के साथ खुद को सेटल करने में जुट गई। गुनीत ने अपना करियर देश की पहली फीमेल डीजे के तौर पर शुरू किया था। बाद में यह सफर प्रोड्यूसर्स-फिल्म डायरेक्टर्स को असिस्ट करने के साथ आगे बढ़ते-बढ़ते यहां तक आ पहुंचा।

हमारे घर की बच्ची देश का दूसरा ऑस्कर लेकर आई है, यह हमारे पूरे परिवार के लिए गर्व की बात है। भोपाल का जहांनुमा पैलेस गुनीत को बहुत ज्यादा पसंद है, वे जब भी आती हैं, वहां जरूर जातीं। पिछले दिसंबर में उनकी शादी हुई, गुनीत का बड़ा मन था कि उनकी शादी जहांनुमा से हो। गुनीत का चीजों को देखने का नजरिया बहुत अलग है। गुनीत की पीरियड फिल्म : एंड ऑफ सेंटेंस को 2019 में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री कैटेगरी में ऑस्कर अवॉर्ड मिल चुका है।

अचीवमेंट पर बात

  • डांस कोरियोग्राफर अरिवंद विश्वकर्मा कहते हैं, बेस्ट ओरिजिनल सॉन्ग के लिए नाटू-नाटू को ऑस्कर मिलना तो बनता है। इसे ऑस्कर दिलाने वाला इसका कैची टेम्पो और साउंड ट्रैक तो है ही, डांस की कोरियोग्राफी भी उतनी ही एनर्जी से भरपूर है, जिसे टेम्पो पर यह सॉन्ग लिखा गया।
  • युवा फिल्मकार सुदीप सोहनी का कहना है, यह फिल्म प्रकृति, इंसान और पर्यावरण के बीच इस तरह से बुनी गई है कि आपको इमोशनली रिलीफ देती है। खासकर इसका अंत जिस तरह बुना गया है कि जंगल में काम करने वाला परिवार हाथी की देखरेख की जिम्मेदारी बतौर संस्कार अगली पीढ़ी को देकर जा रहा है, यह खास है।
  • युवा फिल्मकार हेमांश वर्मा ने कहा, फिल्म के सब्जेक्ट से लेकर सिनेमैटोग्राफी तक हर चीज इस 40 मिनट की फिल्म में इतनी खास है कि इसे देखने वाले हर व्यक्ति के चेहरे से इन 40 मिनटों तक मुस्कान नहीं जाती। छोटे बच्चों के साथ यह फिल्म देखी जाए तो उनका जानवरों से लगाव और प्यार गहरा हो जाएगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here