रंग पंचमी पर रंगों से राजबाड़ा की सुरक्षा को लेकर बरती गई सावधानी ने राजबाड़ा को बेरंग कर दिया है। रंग पंचमी पर निकली गेर से राजबाडा को बचाने के लिए पहली बार उसे मोटे तिरपाल से कवर किया गया था। तिरपाल बांधने के लिए बड़ी-बड़ी कीलें उपयोग में लाई गई थीं।
नतीजा यह हुआ कि राजबाडा की रंगों और धूल से सुरक्षा तो हो गई, लेकिन तिरपाल को कसकर बांधने व निकालने के दौरान राजबाड़ा की दीवारों के कई हिस्सों का प्लास्टर निकल गया, तो कहीं दरक गया।
जानकारी लगते ही नगर निगम, पुरातत्व विभाग और इंदौर स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट लिमिटेड (ISCDL) के अधिकारी सक्रिय हो गए। ISCDL ने तुरंत इसकी रिपेयरिंग शुरू कर दी। चूंकि प्लास्टर गीला था, इसलिए पहले उसे सूख जाने दिया और अब पूरी तरह से फीनिशिंग कर दी गई है।
17वीं सदी में बना राजबाडा 1984 में सिख विरोधी दंगे के दौरान जल गया था। इसके बाद इसका पुनर्निर्माण किया गया था। इसके बाद पांच साल पहले स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत उक्त हैरिटेज का 17 करोड़ रुपए की लागत से जीर्णोद्धार किया गया। फिर करीब डेढ़ माह पहले यह पर्यटकों के लिए शुरू किया गया। इस बीच रंग पंचमी पर निकलने वाली गेर को लेकर इसकी सुरक्षा को लेकर मंथन हुआ।
पहली बार तिरपाल से कवर किया
दरअसल बीते सालों में जब भी रंग पंचमी की गेर निकली तो राजबाडा को कभी तिरपाल से कवर नहीं किया गया था। चूंकि इस बार गेर को लेकर काफी धूम थी और 100 फीट तक रंग उड़ाने वाली मिसाइलें प्रयुक्त की जानी थी तथा राजबाडा की ख़ूबसूरती के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए गए थे इसलिए नगर निगम ने रंग पंचमी के एक दिन पहले इसे तिरपाल से पूरी तरह कवर कर दिया गया। इसके लिए बड़ी टीम लगी जिसमें कारीगरों ने ड्रिल मशीन का उपयोग कर कीलें ठोंकी और पूरे राजबाडा को ऊपर से नीचे तक तीन हिस्सों में तिरपाल से कवर कर दिया। इस दौरान बड़े हुक, मोटी रस्सी आदि का उपयोग भी किया गया। बताया जाता है कि राजबाडा की इस दो दिन की सुरक्षा में ही 8 लाख रुपए खर्च किए गए।
तिरपाल निकालने के बाद गया पर्यटकों का ध्यान
यह पहला अवसर था जब लोगों ने राजबाडा को इस तरह कवर देखा। बहरहाल, धूमधाम से गेर निकली और नगर निगम ने पूरे क्षेत्र को एक घंटे में साफ कर दिया। अगले दिन सोमवार को नगर निगम ने राजबाडा की तिरपाल हटा दी। इसके बाद यहां आए पर्यटकों का ध्यान 7वीं मंजिल पर स्थित टॉवर पर गया तो वहां कील से दीवारें दरकी हुई थी।
कील से कुछ-कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हो गए थे। जबकि अंदर काफी धूल जमा हो गई थी। प्रकाश परांजपे (डिप्टी डायरेक्टर, पुरातत्व विभाग) के मुताबिक राजबाडा को तिरपाल से सुरक्षित करने का निर्णय नगर निगम व ISCDL का था। इसे लेकर निगम को अवगत करा दिया गया। राजबाडा को जो नुकसान हुआ था उसे लेकर हमने ISCDL को 13 मार्च को पत्र लिखकर अवगत करा दिया था।
उधर, ISCDL के सीईओ दिव्यांक सिंह का कहना है कि रंगों से बचाने के लिए तिरपाल से कवर किया गया था। कुछ हिस्सों में नुकसान होने का मामला जैसे ही सामने आया तो निरीक्षण कर रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया। पुताई व फीनिशिंग भी पूरी कर दी गई। परांजपे का कहना है कि अब रिपेयरिंग सहित पूरा काम हो चुका है।