ग्वालियर में भी है करौली धाम करौली से पिंडी स्वरूप में लाकर की थी मां की स्थापना, सिंधिया घराना भी करता है पूजा

ग्वालियर के महलगांव में स्थापित कैलादेवी (करौली माता) का मंदिर 102 साल पुराना है। एक सदी पहले हीरालाल नामक व्यक्ति को यहां माता सपने में दिखी थीं, जिसके बाद वह राजस्थान के करौली धाम से मां कैलादेवी को पिंडी स्वरूप में लेकर ग्वालियर आए। यहां उन्होंने राजराजेश्वरी के रूप में उनकी स्थापना की। तब यह इस मंदिर की कीर्ति ऐसी ही बनी हुई है। सिंधिया राजघराना भी करता है यहां विशेष पूजा अर्चना।

बता दें कि यह मंदिर छोटी करौली माता धाम के नाम से ग्वालियर-चंबल में लोगों की आस्था का केन्द्र है। नवरात्र में यहां 9 दिन भव्य मेला लगता है। भक्त सुबह से रात तक यहां आते हैं। जो लोग बड़ी करौली नहीं जा पाते हैं, वह यहां पहुंचकर अपनी मुराद मांगते हैं। सिंधिया घराना भी इस मंदिर पर विशेष पूजा अर्चना करने आते हैं। अब यह मंदिर करौली माता महलगांव के नाम से भी चर्चित है।

ऐसे हुई थी करौली वाली मैया की स्थापना
यहां माता को राजराजेश्वरी के तौर पर विराजमान किया गया है। यहां महारानी की तरह मां की पूजा-अर्चना की जाती है। इस मंदिर की कहानी बड़ी ही रोचक है। ग्वालियर का सबसे पॉश और सिटी सेंटर के पास स्थित महलगांव जहां मां कैलादेवी स्थापित हैं। करीब 102 साल पहले यहां घना जंगल हुआ करता था। यहां से करीब दो से तीन किलोमीटर दूर ओहदपुर गांव है। वहां से लोग यहां मवेशी चराने आते थे। उस समय ओहदपुर के हीरालाल भी गायों को लेकर आते थे। एक दिन वह थककर बैठ गए। वह कुंअर महाराज का चबूतरा था। वहां उनकी झपकी लग गई और मां उनको सपने में दिखीं। इसके बाद वह करौली राजस्थान में प्राचीन कैलादेवी मंदिर से पिंडी स्वरूप में माता को लेकर यहां आए और आज के महलगांव में उनकी स्थापना की।

चामुंडादेवी व सरस्वती भी हैं विराजमान
ग्वालियर के महलगांव में करौली स्थित कैला देवी के तर्ज पर मां का दरबार सजाया गया। मंदिर के आस-पास परकोट खींचकर महलनुमा आकार दिया गया। जैसे-जैसे लोग मंदिर में आए और उनकी हर मनोकामना मां कैलादेवी और कुंअर महाराज ने पूरी की तो माता का यह मंदिर पूरे अंचल में चर्चित होता चला गया। मंदिर के अंदर ही चामुंडा देवी और सरस्वती देवी को विराजमान किया गया। इसके बाद आस-पास के लोग मंदिर के पूर्वी गेट के आस-पास निवास करने लगे जोकि आज घनी बस्ती है। मां कैला देवी की पूजा अर्चना के लिए विशाल कुंड की स्थापना की गई। इस कुंड के बीचों बीच रामेश्वरम् भगवान शिव की स्थापना हुई। मंदिर परिसर में भैरव नाथ, हनुमान, राम दरवार, आसमानी माता की मूर्तियां है।

सिंधिया स्टेट राजवंश से लेकर सरदारों तक भी करते हैं पूजा-अर्चना
मां कैलादेवी कुंअर महाराज की स्थापना के बाद सिंधिया स्टेट के तात्कालीन महाराज भी मंदिर में दर्शन करने जाते थे। यहां स्टेट के सरदारों की भी मन्नते पूरी हुई हैं। यह सरदारों के वसंज आज भी मंदिर की खास पूजाओं में शामिल होते हैं। यहां दशहरा, बसंत पंचमी, रंगपंचमी सहित मंदिर के स्थापना दिवस पर भी विशेष दरबार लगाए जाते हैं।

मंदिर आने वाले भक्तों का कहना

  • मोहिनी ने बताया कि इस माता के मंदिर की महिमा पुरा ग्वालियर जानता है। मैं हर सुबह पूजा करने आती हूं। नवरात्रि के दिनों में मंदिर पर पूरे 9 दिन भक्तों की भीड़ लगी रहती है इसके अलावा सोमवार और शुक्रवार को मंदिर पर भक्तों माता के दर्शन करने आते हैं।
  • अंजू गुप्ता का कहना है कि करौली वाली माता मंदिर की बहुत मान्यता है। मैं करीब 10 साल से मंदिर पर दर्शन करने आती हूं। उनका कहना है कि यह बहुत पुराना और प्रसिद्ध मंदिर है। यहां हर मनोकामना पूरी होती है।

माता की शक्ति और भक्ति निराली है
करौली माता मंदिर के पुजारी महामंडलेश्वर कपिल ने बताया कि इस समय चैत्र नवरात्रि चल रहा है देवी मां का और हमारे हिंदू धर्म के अंदर चैत्र नवरात्रि शुरू वाले दिन से ही नया साल मनाया जाता है। इस समय नव संवत्सर 2080 चल रहा है। नव संवत्सर प्रारंभ होते ही लोग माता की आराधना में लग जाते हैं और जो भी भक्त माता की आराधना करते हैं मैया उनकी मनोकामना पूरी कर देती हैं। महामंडलेश्वर ने बताया कि जो केला देवी माता का मंदिर है इन्हें छोटी करौली माता के मंदिर से जाना जाता है।

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