इंदौर में 4 साल में करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी पक्षी विज्ञान केंद्र अभी तक अधूरा

सिरपुर तालाब के किनारे चार साल पहले पक्षी विज्ञान केंद्र का निर्माण शुरू हुआ था, लेकिन अभी भी यह अधूरा है। इसके पूरा होने के बाद नगर में आने वाले पक्षियों, उनका जीवनचक्र, कहां से और किस कारण प्रवासी पक्षी यहां आ रहे हैं, जैसी तमाम जानकारियां तमाम लोगों को मिल सकेगी।

पर्यावरण पर शोध करने वालों के लिए भी यह सहायक होगा। करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद आज यह केंद्र बदहाली की मार झेल रहा है। सांसद और मंत्री ने भी इसके निर्माण में लाखों रुपयों की मदद की, लेकिन अब किसी का ध्यान नहीं। नगर निगम द्वारा बनाए जा रहे इस केंद्र का भवन जरूर बन गया, पर उसके अनुरूप आंतरिक सज्जा करने वाली कोई भी कंपनी अब तक नहीं मिली है।

शासकीय महाकोशल महाविद्यालय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत मप्र उच्च शिक्षा विभाग के आदेशानुसार उन्मुखीकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

उल्लेखनीय है कि सिरपुर तालाब के किनारे करीब 10 एकड़ क्षेत्र में पक्षी विज्ञान केंद्र बनाने के लिए जिस तरह की आंतरिक सज्जा चाहिए, उसके अनुसार कोई भी कंपनी अभी तक तय नहीं हो पाई है। इससे यह केंद्र बदहाली की मार झेल रहा है। तीन बार टेंडर जारी होने के बावजूद अभी तक निगम और पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करने वाली संस्था के बीच एकरूपता नहीं बन पा रही है। इस केंद्र के निर्माण के लिए सुमित्रा महाजन ने सांसद निधि से और प्रकाश जावड़ेकर ने मंत्री मद से 25-25 लाख रुपये दिए थे। यह भवन एक करोड़ 20 लाख रुपये में बना है और केंद्र को पूर्ण रूप देने में करीब 2 करोड़ रुपये का और खर्च आ सकता है।

जानकार ही कर सकते हैं आंतरिक सज्जा

पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रयासरत संस्था ‘द नेचर वालेंटियर्स’ के अध्यक्ष भालू मोंढे के अनुसार यहां की आंतरिक सज्जा के लिए जो निविदा जारी की गई है, उसमें अभी तक उपयुक्त कंपनी नहीं मिली जो केंद्र की अवधारणा को पूरा कर सके। इसे वही बना सकता है जिसे प्रकृति के बारे में जानकारी हो। पहले चरण में इमारत और अगले दो चरण में आंतरिक सज्जा का काम होना था। इसमें छत पर दूरबीन, लाइब्रेरी, दो गेस्ट हाउस, पक्षियों के जीवनचक्र को समझाते माडल, पक्षियों से जुड़ी जानकारियां देते चार्ट आदि शामिल किए जाने हैं।

सहमति नहीं बनने पर अटका काम

कार्यपालन यंत्री सुधीर गुप्ता के अनुसार केंद्र को पूर्ण रूप देने के लिए दो बार पहले भी टेंडर जारी किए जा चुके हैं, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करने वाली संस्थाओं ने उनपर सहमति नहीं दी। इसलिए उन्हें रद करना पड़ा। एक बार और टेंडर जारी किए जाने की योजना है, जिससे कार्य जल्द से जल्द पूरा किया जा सके।

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