बारह ज्योतिर्लिंग में शामिल ओंकोरश्वर मंदिर को लेकर मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती यहां रात्रि विश्राम करते हैं और यहां शयन के पूर्व चौसर-पांसे खेलते हैं, इसलिए मंदिर के गर्भगृह में सदियों से चौसर-पांसे की बिसात सजाई जा रही है।
कई बार सुबह चौसर और पांसे बिखरे हुए मिलते हैं। महाशिवरात्रि पर यहां सेज और पालना के साथ ही नई चौसर सजेगी।
ओंकोरश्वर मंदिर के प्रमुख पुजारी पंड़ित डंकेश्वर दीक्षित ने बताया कि ओंकारेश्वर मंदिर की परंपराओं और धार्मिक रस्मों को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं। यह देश का एकमात्र ज्योतिर्लिंग मंदिर है, जहां प्रतिदिन रात में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती के लिए बिछावना और चौसर बिछाया जाता है। मान्यता है कि वे रात्रि विश्राम यहां करने के बाद रात तीन बजे उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर पहुंचकर भस्म आरती में उपस्थित होते हैं।
साल में 15 दिन नहीं बिछती सेज और चौसर
साल में 15 दिन मंदिर के गर्भगृह में सेज,पालना और चौसर सजाने की परंपरा का निर्वाह नहीं होता है। मान्यता है कि कार्तिक सुदी अष्टमी पर परंपरानुसार भगवान मालवा-निमाड़ के भ्रमण पर जाते हैं। इस दौरान शाम को शयन आरती के समय भगवान का बिछावना (बिस्तर), पालना और चौसर भी नहीं सजाए जाते हैं। भगवान भैरव अष्टमी यात्रा कर वापस मंदिर लौटने पर परंपरा अनुसार फिर यह सजाने लगते हैं। महाशिवरात्रि पर मंदिर के पद दर्शनार्थियों के लिए 24 घंटे खुले रहने से शयन आरती रात्रि 8:30 बजे की जगह रात तीन बजे होती है।
एकांत में होती है शयन आरती
पंडित दीक्षित के अनुसार बारह ज्योतिर्लिंग में ओंकारेश्वर ऐसा एकमात्र मंदिर है जहां रात्रि में शयन आरती एकांत (गुप्त आरती) में होती है। इसमें पुजारियों के अलावा अन्य कोई गर्भगृह में नहीं रहता है। रात 8:30 बजे आरती उपरांत आधे घंटे के लिए पट दर्शनार्थियों के लिए खोले जाते हैं। इसके बाद पट सुबह पांच बजे तक बंद रहते हैं।